17 अगस्त 2025
घर का मालिक अबू हमज़ा… जिसने अपने दरवाज़े खोले थे कुछ बेसहारा लोगों के लिए।
वो लोग सड़क पर थे, बमबारी से तबाह…
तो अबू हमज़ा ने कहा —
“ये मकान छोटा है… मगर दिल बड़ा है। रह लो यहाँ… भूखे मत रहना।”
दिन गुज़रे… बच्चे उस घर में हंसी-खुशी खेलने लगे, औरतों ने चूल्हे में आग जलाई, ज़िंदगी जैसे किसी तिनके से फिर जुड़ गई।
मगर दोस्तों… हालात बदले।
और एक दिन, वही बेसहारे, उसी घर के मालिक से बोले —
“अब ये घर हमारा है… तुम निकलो यहाँ से।”
सोचिए…
जिसने आसरा दिया, उसे ही बेआसरा कर दिया गया।
अबू हमज़ा रोते हुए बोला —
“मैंने तो तुम्हें घर दिया था… और तुमने मुझे बेघर कर दिया।”
उसकी बूढ़ी माँ ने बस इतना कहा —
“बेटा, यही तो हमारी किस्मत है… फिलिस्तीनी होना।”
आज ये कहानी सिर्फ़ अबू हमज़ा की नहीं,
बल्कि पूरे फिलिस्तीन की है…
जहाँ इंसानियत जिंदा है, मगर इंसानों के बीच मर चुकी है।
सोचो दोस्तों…
क्या यही इंसाफ़ है?"
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