📰Times Watch - दम तोड़ते सच को बचाने की कोशिश,
27 अगस्त 2025
✒️ग़ज़ा की कलम से: अमर ताबाश का लेख
शहीद पत्रकार हुसाम अल-मिस्री को याद करते हुए
गाज़ा —
हमारे साथी, हमारे भाई, हमारे हमसफ़र हुसाम अल-मिस्री अब हमारे बीच नहीं रहे।
वो कभी मैदान से पीछे नहीं हटे।
गोलियों और बमों के बीच भी कैमरे को थामे रहे, ताकि दुनिया सच देख सके।
लेकिन उनके दिल पर एक बोझ हमेशा रहा—
उनकी बीमार पत्नी।
कैंसर से लड़ती हुई, तड़पती हुई… और हुसाम हर दरवाज़ा खटखटाते रहे, ताकि कोई उनकी मदद करे।
कुछ दिन पहले, हुसाम ने टूटी आवाज़ में मुझसे कहा था:
“क्या आप मेरी पत्नी को बाहर ले जाने में मदद कर सकते हैं? बीमारी ने उसे तोड़ दिया है, और मैं उसे और तकलीफ़ में नहीं देख सकता…”
उनकी यह पुकार कोई न सुन सका।
आज हुसाम शहीद हो गए।
लेकिन उनकी पत्नी अब सिर्फ़ बीमारी से ही नहीं, बल्कि अपने सबसे बड़े सहारे—अपने हमसफ़र—को खोने के दर्द से भी लड़ रही हैं।
हुसाम का मिशन, उनकी विरासत
- हुसाम सिर्फ़ एक पत्रकार नहीं थे, बल्कि एक पाक दिल इंसान थे।
- उन्होंने नासिर अस्पताल की घेराबंदी के दौरान आख़िरी सांस तक डटे रहकर सच्चाई दिखाने का काम किया।
- हर गली, हर कैम्प, हर खंडहर—वह वहाँ मौजूद थे जहाँ आवाज़ें दबाई जा रही थीं।
हमारी ज़िम्मेदारी
हुसाम चले गए।
मगर उनके छोटे बच्चों और उनकी बीमार पत्नी को अब हमारी ज़रूरत है।
यह हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी है कि हम उन्हें अकेला न छोड़ें।
उनकी मदद करें, ताकि हुसाम की याद ज़िंदा रहे और उनकी पत्नी अपने बच्चों के साथ ज़िंदगी की लड़ाई जीत सके।
दुआ और सलाम
अल्लाह हुसाम पर रहमत नाज़िल करे।
उनकी पत्नी को शिफ़ा दे।
और हमें ताक़त दे कि हम हुसाम के मिशन—सच बोलने और इंसानियत के लिए खड़े होने—को आगे बढ़ा सकें।
👉 यह सिर्फ़ एक श्रद्धांजलि नहीं है, बल्कि एक पुकार है—हुसाम की पत्नी और परिवार को अकेला मत छोड़ो।
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