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मांझी ने अपने दल Hindustani Awam Morcha (Secular) के लिए 15–20 सीटें मांगी।
बोधगया में पत्रकारों से बात करते हुए जीतनराम मांझी ने स्पष्ट कहा: “हमारी पार्टी का यह do-or-die पल है — 15–20 सीटें दीजिए नहीं तो हम 100 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगे।” यह बयान NDA के अंदर सीट-बंटवारे की जद्दोजहद में नया तनाव बन गया है।
मुख्य बातें
- मांग: मांझी ने अपने दल Hindustani Awam Morcha (Secular) के लिए 15–20 सीटें मांगी।
- धमकी/विकल्प: कहा कि अगर यह नहीं मिला तो पार्टी अकेले 50–100 सीटों पर उम्मीदवार उतारने पर विचार कर सकती है।
- कारण: HAM को चुनाव आयोग से मान्यता चाहिए और संस्थागत पहचान हासिल करने की रणनीति प्रमुख है।
- राजनीतिक असर: NDA में सहमति बाधित होने पर गठबंधन पर असर पड़ सकता है, खासकर जहाँ अन्य छोटे सहयोगी भी दावेदार हैं।
विश्लेषण — क्या है मायने?
मान्यता-लक्ष्य: HAM की प्राथमिक रणनीति पार्टी को चुनाव आयोग-स्तर की मान्यता दिलवाना है — इसलिए मांझी का रुख हार-जीत की रणनीति पर निर्भर नहीं बल्कि संस्थागत पहचान पर केंद्रित है।
सियासी दबाव: छोटे सहयोगी अक्सर सीट-मांग के ज़रिये बड़े गठबंधन पर दवाब बढ़ाते हैं; मांझी का यह कदम NDA के अंदर सौदेबाज़ी को प्रभावित कर सकता है।
जोखिम-फायदा: अकेले ज्यादा सीटें लड़ने का फैसला मतदान विभाजन का कारण बन सकता है और NDA को नुकसान पहुंचा सकता है — इसलिए यह एक हाई-रिस्क, हाई-रिटर्न रणनीति है।
क्यों पढ़ें — रीडर को मतलब
बिहार की सीट-रचना और NDA-जुटान सीधे राज्य-सरकार की तस्वीर बदल सकती है — छोटे सहयोगियों की नाराज़गी पूरे गठबंधन को हिलाकर रख सकती है। यह मुद्दा स्थानीय नीतियों और राज्य-स्तरीय समीकरणों को प्रभावित करेगा।
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Jeetan Ram Manjhi |
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