धोखा देने वाला हमेशा सुरक्षित नहीं होता। राजनीति में विश्वास तोड़ने की कीमत देर-सबेर चुकानी ही पड़ती है।"---
📰 महाराष्ट्र की राजनीति में भूचाल: शिंदे गुट के विधायक भाजपा में शामिल मुंबई, 19 अगस्त 2025 – महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर करवट ले रही है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को बड़ा झटका देते हुए उनके करीबी माने जाने वाले कुछ प्रमुख विधायक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो गए हैं।यह घटनाक्रम ऐसे समय में सामने आया है जब एनडीए गठबंधन की आंतरिक खींचतान तेज होती जा रही है।🔹 क्या है नेताओं की शिकायत?इन नेताओं ने अपने बयान में भाजपा में जाने के कुछ मुख्य कारण बताए हैं:गठबंधन में कमजोर स्थिति: शिंदे गुट के अनुसार, भाजपा और अजित पवार के आने के बाद उनकी राजनीतिक हैसियत कम होती जा रही है।अनदेखी और उपेक्षा: कई नेताओं ने कहा कि उन्हें सरकार में उचित पद नहीं मिले, न ही उनकी बातों को कोई महत्व दिया गया।फडणवीस का बढ़ता वर्चस्व: भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस की सरकार में बढ़ती पकड़ के चलते शिंदे समर्थकों में बेचैनी फैल गई।नीतिगत निर्णयों में भागीदारी की कमी: शिंदे गुट के विधायक मानते हैं कि अब उनके फैसलों का कोई वज़न नहीं बचा।
🔹 भाजपा की प्रतिक्रियाभाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने इस घटनाक्रम पर चुप्पी साध रखी है, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह भाजपा की "एकला चलो" रणनीति का हिस्सा हो सकता है। वहीं, शिवसेना (शिंदे गुट) के खेमे में गहरी निराशा और बेचैनी देखी जा रही है।---📊 विश्लेषण: "धोखा देने वाला धोखा खाता है" — सत्ता की चालें और उनकी कीमतएकनाथ शिंदे ने 2022 में उद्धव ठाकरे से बगावत कर महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा उलटफेर किया था। उस समय इसे "बड़ी रणनीतिक जीत" कहा गया, लेकिन आज वही गुट अस्थिरता और असंतोष का शिकार बनता दिख रहा है।🔍 यह कैसी विडंबना है?पहलू 2022 2025बगावत शिंदे ने उद्धव ठाकरे से बगावत कर सत्ता पाई शिंदे के अपने साथी अब उनसे बगावत कर भाजपा में जा रहेभरोसा भाजपा पर विश्वास करके सरकार बनाई अब उसी भाजपा पर भरोसा नहीं रहावफादारी वफादारी छोड़कर अवसर चुना अब उनके वफादार वही कर रहे हैं🔁
राजनीति का चक्रसत्ता में आने के लिए शिंदे ने अपने नेतृत्व को छोड़ भाजपा से हाथ मिलाया — आज उनके अपने नेता भी सत्ता और सुरक्षा के लिए वही रास्ता चुन रहे हैं। यह उदाहरण एक पुरानी कहावत को सच करता है:> "जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, एक दिन खुद भी उसमें गिरता है।"
🎭 धोखा और राजनीति: नैतिकता बनाम अवसरवादशिंदे गुट की बगावत को उस समय नैतिकता की लड़ाई कहा गया था, लेकिन आज यह स्पष्ट होता जा रहा है कि राजनीति में नैतिकता अक्सर सत्ता के साथ गिरवी रख दी जाती है।इस घटनाक्रम से यही साबित होता है —> "धोखा देने वाला हमेशा सुरक्षित नहीं होता। राजनीति में विश्वास तोड़ने की कीमत देर-सबेर चुकानी ही पड़ती है।"---
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