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दिनांक: 26 सितम्बर 2025 | Morning Edition
सस्ती किताबों का खेल समझिए किताब छपने से पहले सादा कागज ही तो होती है यानी किताब के छपने से पहले ही उसको और ज्यादा महंगा कर दिया गया है। तो व्यापारी भी तो किताब को आगे उसी हिसाब से बेचेगा। यानी वो कान जो पहले सीधे सीधे पकड़ा जाता था अब उसे मुर्गा बना कर पकड़वाया जा रहा है।
किताबें सस्ती, पढ़ाई महंगी: GST का एजुकेशन सिस्टम पर खेल
कागज़ पर बढ़ी GST ने नोटबुक और प्रिंटिंग महंगी कर दी, किताबों की राहत केवल दिखावा
सरकार ने छात्रों और माता-पिता को खुश करने के लिए प्रिंटेड किताबों और ब्रोशर पर GST 0% कर दिया, जबकि सादा कागज़ पर GST 12% से बढ़ाकर 18% कर दिया गया। superficially, लगता है कि किताबें सस्ती हुईं और शिक्षा राहत की राह पर है। लेकिन असल खेल कहीं और छुपा है।
क्योंकि किताबें कागज़ से ही बनती हैं, और कागज़ की महंगाई सीधे प्रिंटिंग प्रेस और स्कूल-कॉलेज नोट्स की लागत में जोड़ दी जाती है। यानी दिखावटी राहत के नाम पर छात्रों और माता-पिता की जेब पर असर अब और गहरा हो गया है।
वस्तु | पहले GST | अब GST | असर |
---|---|---|---|
प्रिंटेड किताबें, पैम्फलेट, ब्रोशर | 12% | 0% | किताबें सस्ती, लेकिन केवल नाममात्र राहत |
नोटबुक, रजिस्टर, कॉपीज़ | 12% | 18% | महंगी हो गई, रोज़मर्रा के खर्च बढ़े |
सादा कागज़ | 12% | 18% | प्रिंटिंग और प्रोजेक्ट्स महंगे हुए |
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GST VS Education |
निष्कर्ष:
- किताबें सस्ती होने के बावजूद शिक्षा महंगी हुई है।
- नोटबुक, फोटोकॉपी, प्रोजेक्ट्स और प्रिंटिंग का खर्च बढ़ गया।
- दिखावा राहत का, असल में छात्रों और माता-पिता की जेब पर भारी असर।
विशेष खेल: कागज़ का मास्टरस्ट्रोक
सरकार ने किताबों को GST-free दिखा दिया, लेकिन वही किताब कागज़ से ही बनती है, जिसका GST 18% कर दिया गया। प्रकाशक और व्यापारी इस बढ़ी लागत को किताब के दाम में जोड़ देंगे।
मतलब साफ़ है: पहले सीधा टैक्स लगाया जाता, अब कच्चे माल की महंगाई के जरिए नाम राहत, असली बोझ जनता पर। किताबों की झूठी सस्ती → और खर्चा बढ़ा → शिक्षा महंगी।
स्रोत और प्रमाण:
- Economic Times: Paper GST 12% → 18%
- The Pulp and Paper Times: Uncoated Paper 18%
- New Indian Express: Notebook manufacturers GST impact
कागज़ पर जीएसटी की दर बढ़ाई गई है। नीचे स्रोत + उद्धरण दिए हैं —
📄 कागज़ पर जीएसटी दर 12% → 18% हुई
-
Economic Times में रिपोर्ट:
“The Indian paper industry warns that the recent GST hike on paper and paperboard to 18% will adversely impact consumers … Calling the GST hike on paper from 12 per cent to 18 per cent a regressive step …”
→ यानी कागज़ (paper, paperboard) पर पहले 12% था, अब 18% कर दिया गया है। -
The Pulp and Paper Times में एक विवरण:
“Paper mills will levy GST at 18% on Uncoated Paper and Paperboard (4802). … GST on Uncoated Paper and Paperboard used for writing, printing or graphic purposes … has increased from 12% to 18%.”
→ कंपनियों को आदेश दिया गया है कि वे 22 सितंबर 2025 से कच्चे कागज़ पर 18% जीएसटी लागू करें। -
New Indian Express की रिपोर्ट:
“‘Paper and paperboards are taxed at 18 per cent … while notebooks and textbooks fall under nil rate. … notebook manufacturers are forced to purchase paper at 18 per cent GST, but cannot set off the tax … The 18 per cent paid on paper purchases … gets added to the basic price of the final product.’”
→ कागज़ की दर बढ़ने से निर्माताओं को टैक्स वापस नहीं मिलता, और वो बढ़ी लागत किताबों या कॉपियों में जोड़ देंगे। -
OPA (Offset Printers Association) ने विरोध जताया:
“The Offset Printers Association … has expressed substantial problems … increase in the GST rate on paper and paperboard from 12% to 18%. … this change would increase the cost of textbooks and educational materials.”
इन सब स्रोतों से यह स्पष्ट हो जाता है कि पहले कागज़ पर 12% जीएसटी था, और नीतिगत बदलाव के कारण अब 18% कर दिया गया है — यह बदलाव 22 सितंबर 2025 से लागू है। (विशेषकर “Uncoated Paper and Paperboard (HSN 4802)” पर)
अब ज़रा ठंडी दिमाग से देखो तो ये जीएसटी का असली खेल समझ में आता है —
- किताबें सस्ती हुईं ✅ → ये तो सुनने में बहुत प्यारा लगता है कि शिक्षा को बढ़ावा दिया जा रहा है। किताबें बच्चों तक सस्ती पहुँचेंगी।
- सादा कागज़ महंगा हो गया ❌ → लेकिन शिक्षा सिर्फ़ किताबों से नहीं चलती। नोटबुक्स, रजिस्टर, प्रोजेक्ट वर्क, असाइनमेंट, प्रैक्टिकल फ़ाइल्स, फोटोकॉपी — सबका खर्च सीधा कागज़ पर निर्भर करता है। अब अगर कागज़ पर जीएसटी 12% से बढ़ाकर 18% कर दिया गया, तो स्कूल-कॉलेजों का पूरा प्रिंटिंग सिस्टम महंगा हो गया।
👉 मतलब साफ़ है:
सरकार ने "किताबें सस्ती – शिक्षा सस्ती" का नैरेटिव बनाया, लेकिन असल में जहाँ रोज़मर्रा का खर्च होता है (कॉपी, पन्ने, प्रिंटिंग, फोटोकॉपी), वहाँ बोझ बढ़ा दिया।
🔎 असल असर:
- आम बच्चे की जेब पर भार बढ़ा है।
- कोचिंग, यूनिवर्सिटी, स्कूल — सब अपनी कॉपी और प्रिंटिंग के दाम बढ़ाएँगे।
- किताबें सस्ती होकर भी ज़्यादा फ़ायदा नहीं दे रहीं, क्योंकि बाकी चीज़ों की महंगाई ने उस राहत को निगल लिया।
तो कुल बैलेंस शीट में शिक्षा सस्ती नहीं, बल्कि और महंगी हो गई है।
मेरा कहना है GPT की नज़र में यह बदलाव राजनीतिक और दिखावटी ज़्यादा है: बाहर से लगता है कि "शिक्षा को टैक्स फ़्री किया", लेकिन अंदर असली खर्चा वहीं बढ़ा दिया जहाँ बच्चे और पेरेंट्स रोज़ झेलते हैं।
👉 सीधी भाषा में:
“बुक सस्ती, पढ़ाई महंगी”
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