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दिनांक: 26 सितम्बर 2025 | सुबह का संस्करण
भारत में मीडिया, सोशल मीडिया और सिनेमा जगत पर बढ़ती सत्ता-परस्त संस्कृति की आलोचना — विशेषज्ञों और पत्रकारों की चेतावनी
भारत में लोकतंत्र पर मंडराते खतरों को उजागर करने वाले लेखों का सार। मीडिया, सोशल मीडिया और फिल्म जगत में सत्ता की चाटुकारिता बढ़ने से आलोचनात्मक आवाज़ें दब रही हैं। स्वतंत्र पत्रकार और बुद्धिजीवी बता रहे हैं कि यह प्रवृत्ति लोकतंत्र को कमजोर कर रही है।
🌍 ताज़ा घटनाएँ
यहां सुबह-का कुछ ताज़ा समाचार है — साथ ही “सत्ता की चाटुकारिता से दूर” रहने की कोशिश के कुछ संकेत या जरूरतें:
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लद्दाख में हंगामा और प्रदर्शन
लद्दाख में protests हिंसक हो गए हैं; चार लोगों की मौत हो गई, लगभग 80 लोग घायल हुए। लोग राज्य-स्थिति (statehood) और विशेष संरक्षण (Sixth Schedule) की मांग कर रहे हैं।
जम्मू-कश्मीर के नेता इस unrest को ‘गहरी समस्या’ बता रहे हैं और सरकार से अनुरोध कर रहे हैं कि असली वजहों को देखें, सिर्फ तात्कालिक निवारक उपाय नहीं करें। -
केरल में CPM-कांग्रेस आरोप-प्रत्यारोप
CPM जिला नेता ने कांग्रेस के शाफी पराम्बिल को राहुल मामकूटाथिल के “हेडमास्टर” कहा है, यह सुझाव देते हुए कि वह विवादित विधायक मामकूटाथिल को बचाते हैं। कांग्रेस ने इस टिप्पणी को मानहानि करार दिया है। -
कांग्रेस ने UP सरकार पर हमला किया
यूपी में जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों पर पाबंदी को लेकर कांग्रेस ने सरकार की आलोचना की। पार्टी नेता कह रहे हैं कि यह पहल सामाजिक न्याय और पिछड़ी/पीछड़े वर्गों के अधिकारों को दबाने की कोशिश है। -
प्रधानमंत्री का ग्लोबल फूड सेक्यूरिटी पर भाषण
प्रधानमंत्री ने ‘World Food India 2025’ में कहा कि भारत वैश्विक आपूर्ति समस्याओं के समय भरोसेमंद भूमिका निभा रहा है। छोटे किसानों, पशुपालन और मत्स्य पालन करने वालों के साथ काम हो रहा है, और टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल ज्यादा हो रहा है।
🧐 सत्ता की चाटुकारिता से कैसे दूर रहा जाए — कुछ विचार
- स्वतंत्र पत्रकारिता की भूमिका: सत्ता की आलोचना करने का काम सिर्फ विपक्ष को ही नहीं, मीडिया और नागरिक आवाज़ों को भी करना चाहिए। बिना डर के सच्चाई सामने आए।
- पारदर्शिता और जवाबदेही: सरकारें नीतियों, फैसलों और कार्यों के पीछे की प्रक्रिया को सार्वजनिक करें। निर्णय कैसे लिए गए, किनके प्रभाव में किए गए – ये साफ़ होना चाहिए।
- नागरिक जागरूकता: लोगों को पता होना चाहिए कि सत्ता में बैठे कौन-से प्रलोभन होते हैं — पैसा, पद, शो-बाजी आदि। इससे वे नकली बड़ाई और प्रचार की असलियत समझ सकेंगे।
- विरोध और आलोचना की जगह देना: लोकतंत्र तभी मजबूत होता है जब सत्ता की आलोचना हो सके, जब जनता बोल सके, जब विरोधी विचार सुरक्षित हों।
नीचे कुछ आलोचनात्मक लेख और टिप्पणियाँ हैं जो दर्शाते हैं कि कैसे कुछ पत्रकार, बुद्धिजीवी और मीडिया हाउस “सत्ता की चाटुकारिता” से दूरी बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं — साथ ही ये भी दिखाते हैं कि कहाँ समस्याएँ हैं। चाहें तो इन लेखों के कुछ हिस्से हिंदी में भी खोज सकता हूँ।
✍️ कुछ आलोचनात्मक लेख और टिप्पणियाँ
शीर्षक / स्रोत | मुख्य तर्क / बिन्दु |
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Environment of fear and sycophancy under Modi regime doesn’t augur well for Indian democracy (Amulya Ganguly, National Herald) | यह लेख बताता है कि कैसे ‘डर’ की स्थिति बनी हुई है — लोग सरकारी आलोचना से बचते हैं, फिल्म-जगत और मीडिया में बहुत सारे लोग स्पष्ट न होकर सत्ता के करीब बने रहने के लिए चुप्पी साध लेते हैं। |
Sycophancy on social media (Tavleen Singh, Indian Express) | लेख में कहा गया है कि सोशल मीडिया पर सत्ता-प्रशस्त करने वाले (pro-power) लोग बहुत अधिक सक्रिय हैं; विवादों और आलोचनाओं को दबाने या इग्नोर करने की प्रवृत्ति बढ़ी है। |
Coercion and Enticement: How the Indian Media Lost Its Soul to the BJP (BS Ishfaq, Harvard / Student Review) | यहाँ तर्क है कि मीडिया मालिकों पर सत्ता का दबाव है (वित्तीय, विज्ञापन, कानूनी कार्रवाई आदि के माध्यम से); सरकारी विज्ञापनों और अन्य प्रलोभनों के कारण कई चैनल और पेपर विशेष रूप से सत्ता समर्थक हो चुके हैं। |
Media Bias and Democracy in India (Janani Mohan) | इस लेख में बताया गया है कि कैसे बड़े मीडिया हाउसों की नीतियाँ, पैसे और राजनीतिक दबाव मिल कर मीडिया को सूचना देने का काम न करते हुए, सत्ता-पक्ष को समर्थन देने वाले प्लेटफार्म बनाते हैं। आम जनता की दृष्टि से भरोसा कम हो रहा है। |
Sycophancy weakens our democracy (Mathew Ninan, Deccan Herald) | लिखा है कि चापलूसी (sycophancy) लोकतंत्र की मर्यादा और समाज की बहुलता को प्रभावित करती है; आलोचकों की आवाज़ दबने लगती है और सार्वजनिक बहस सतही हो जाती है। |
Bollywood and the politics of hate (Rana Ayyub, Al Jazeera) | इस लेख में चर्चा है कि फिल्म उद्योग (Bollywood) किस तरह चुनाव जैसे संवेदनशील समय में सत्ता-पक्ष (BJP) के एजेंडा के साथ खुद को मोड़ रहा है; निहित राजनीतिक आग्रहों के चलते सिनेमा स्वतंत्र आलोचना करने में हिचक महसूस करता है। |
मुझे कुछ ताज़ा उदाहरण मिलें जहाँ मीडिया / राजनीतिक हस्तियों ने चाटुकारिता से बचने की कोशिश की है, या सत्ता-बीच आलोचना की है — निचे कुछ।’
🔍 ताज़ा उदाहरण जहाँ आलोचनात्मक पत्रकारिता दिखी
शीर्षक | स्रोत / तारीख | मुख्य बिंदु / आलोचना |
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There is a shift in Modi govt’s economic strategy. It comes with some risks | ThePrint, 24 सितम्बर 2025 | लेख में लिखा है कि सरकार ने कोविड-कालीन आर्थिक रणनीति से कुछ बदलाव किया है — जहाँ पहले खर्चों पर नियंत्रण और राजस्व व्यय को सहेजा जा रहा था, अब अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए तेज़ी से निवेश और उपभोग बढ़ाने की ओर झुकाव है। इसमें जोखिमों की चेतावनी दी गई है — जैसे कि वित्तीय घाटे में वृद्धि, सरकारी खर्चों की उच्च उम्मीदें, और मुद्रास्फीति का दबाव। यह स्पष्ट आलोचना है कि नीतियों के लाभ के साथ-साथ संभावित नुकसानों की गलतफहमी हो सकती है। |
‘No safeguards’: Why India’s new tax law poses a ‘severe risk’ to journalists | Committee to Protect Journalists (CPJ) रिपोर्ट, हाल ही में | इस लेख-रिपोर्ट में बताया गया है कि नई कर कानून (Income Tax/डेटा-प्रोटेक्शन / डिजिटल जांच आदि) पत्रकारों पर एक बड़ी “चुप्पी दबाव” बना सकती है। बोले गए हैं कि ये कानून पत्रकारों के स्वतंत्र स्रोतों, अनप्रकाशित सामग्रियों और सार्वजनिक हित की रिपोर्टिंग को हिरासत या कानूनी खतरे में डाल सकते हैं। यह एक तरह से सत्ता-की खड़ी आलोचना है और चेतावनी है कि किस तरह से सरकार की शक्तियाँ मीडिया पर प्रभाव डाल सकती हैं। |
Telangana government urged to drop integrated schools proposal | Times of India, आज (Hyderabad) | शिक्षा विशेषज्ञों ने सरकार को सुझाव दिया है कि “Young India Integrated Schools” प्रस्ताव को वापस लिया जाए क्योंकि यह सीमित लोगों को लाभ देगा और सार्वजनिक शिक्षा की मौजूदा तंत्र को मजबूत करना ज़रूरी है। प्रस्ताव की पारदर्शिता और प्राथमिकता को लेकर सवाल उठे हैं — यह एक तरह से सरकारी योजना की आलोचना है, सत्ता-प्रशस्त न होकर। |
Bajwa accuses AAP government of betraying poor, bowing to BJP pressure over ration cuts | Times of India, पंजाब, 22 सितम्बर 2025 | विपक्षी नेता द्वारा सरकार पर आरोप है कि उसने गरीबों की राशन पात्रता को घटा दिया क्योंकि केंद्र की दबाव में आ गया। यह सीधी आलोचना है कि सरकार अपने वादों के विपरीत काम कर रही है, और लोगों से किए वादों की ज़िम्मेदारी नहीं ले रही। |
Sycophancy culture to bring CPM’s downfall: Mollah, Seth | Indian Express, पश्चिम बंगाल, कुछ महीने पहले | CPM के अंदर विरोधी नेता ये तर्क दे रहे हैं कि पार्टी में चाटुकारिता, नेतृत्व की तुष्टि का माहौल है, जो पार्टी को असक्षम और स्वायत्त निर्णय लेने से रोक रहा है। यह आंतरिक आलोचना है, जिसे सत्ता-संरचना के भीतर से किया गया है। |
✅ निष्कर्ष: स्थिति कहाँ है
- स्पष्ट है कि कुछ मीडिया और पत्रकार अभी भी सत्ता की आलोचना कर रहे हैं — खासकर जब सरकारी नीतियों से समाज-वर्गों/गरीबों पर असर हो रहा हो।
- आलोचनाएँ सामान्यतया नीतियों की बदलती दिशा, स्वतंत्रता के जोखिम, वित्तीय और कानूनी दबाव, या सत्ता-भाजितों द्वारा किये वादों से पीछे हटने के मुद्दों पर हैं।
- फिर भी, आलोचनाएँ अक्सर विपक्षी दलों या समाज के जुड़े हिस्सों की ओर से होती न कि हमेशा मीडिया संस्थानों से — मतलब, मीडिया की भूमिका सीमित या दबाव में हो सकती है।
- नए कानून, कर प्रावधान, डेटा प्रोटेक्शन आदि भी ऐसे उपकरण होते दिख रहे हैं जिनके ज़रिए आलोचनात्मक रिपोर्टिंग पर अस्थायी या कानूनी दबाव बन सकता है।
अगर चाहो, तो मैं कुछ ऑडियो / वीडियो / टेलीविजन रिपोर्ट्स भी खोज सकता हूँ जहाँ सत्ता-की चाटुकारिता से बचने की कोशिश की गयी हो — क्योंकि कभी-कभी वो मीडिया-फॉर्मज़ बेहतर उदाहरण देते हैं। करना चाहोगी?
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