📰Times Watch - दम तोड़ते सच को बचाने की कोशिश,
अभिसार शर्मा से जुड़ी खबर पर विस्तार से बात करते हैं। यह मामला सिर्फ एक पत्रकार के खिलाफ एफआईआर का नहीं है, बल्कि यह अभिव्यक्ति की आजादी और पत्रकारिता के सामने खड़ी चुनौतियों को दिखाता है।
क्या है पूरा मामला?
पत्रकार अभिसार शर्मा के खिलाफ असम के शिवसागर जिले के एक व्यक्ति ने शिकायत दर्ज कराई है। इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है।
आरोप:
शिकायतकर्ता ने अभिसार शर्मा पर दो मुख्य आरोप लगाए हैं:
* सरकार का उपहास: उन पर असम और केंद्र सरकार का उपहास उड़ाने का आरोप है।
* धार्मिक वैमनस्य: उन पर एक विशेष धर्म के लोगों में असंतोष पैदा करने और दो धार्मिक समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने का आरोप है।
अभिसार शर्मा अपने यूट्यूब चैनल पर समसामयिक मुद्दों पर तीखी और विश्लेषणात्मक टिप्पणियां करते हैं। उनकी रिपोर्ट अक्सर सरकार की नीतियों और फैसलों की आलोचना करती है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर असर
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारे संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पत्रकारों को सत्ता से सवाल पूछने और जनता तक सच पहुंचाने की ताकत देती है। इस मामले में, कई विश्लेषकों का मानना है कि यह एफआईआर सरकार की आलोचना को दबाने का एक प्रयास हो सकता है।
इस तरह की कानूनी कार्रवाई से पत्रकारों पर दबाव बढ़ता है, जिससे वे खुलकर सच लिखने से डर सकते हैं। यह मामला इस बात पर बहस छेड़ता है कि क्या सरकार अपनी आलोचना को राष्ट्र-विरोधी या धार्मिक वैमनस्य फैलाने वाला कहकर चुप करा रही है।
अभिसार शर्मा का पक्ष
इस एफआईआर पर अभिसार शर्मा ने अपने यूट्यूब चैनल पर एक वीडियो जारी कर अपनी प्रतिक्रिया दी।
* उन्होंने इस एफआईआर को 'बेमानी' (meaningless) और 'झूठी' बताया है।
* उन्होंने कहा है कि वह इन आरोपों से डरने वाले नहीं हैं और वे कानूनी तरीके से इसका सामना करेंगे।
* उन्होंने इस एफआईआर को पत्रकारिता पर हमले के तौर पर देखा है।
यह खबर दर्शाती है कि पत्रकारों के लिए सच बोलना कितना मुश्किल हो सकता है, खासकर तब जब वे सत्ता की आलोचना करें। यह मामला आने वाले समय में एक महत्वपूर्ण कानूनी और नैतिक बहस को जन्म दे सकता है।
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