हम खबरों में से खबरें निकालते हैं बाल की खाल की तरह
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर का दावा - हिंदू 90% से 80% और मुस्लिम 6% से 20%: क्या है सच?
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का एक विवादास्पद बयान सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से प्रसारित हो रहा है, जिसमें भारत की धर्मनिरपेक्षता और जनसांख्यिकीय आंकड़ों पर टिप्पणी की गई है[web:2][web:6]।
बयान का विश्लेषण
ऐसा लगता है भारत में एक होड़ लगी हुई है खासकर 2014 के बाद से के कौन ज्यादा मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाएगा कौन ज्यादा झूठे प्रोपेगैंडे फैलाता है जो ज्यादा फैलाएगा उसका उतना बड़ा पद।
धीरेंद्र शास्त्री का दावा है कि भारत धर्मनिरपेक्ष देश नहीं है क्योंकि यह "हिंदू खतरे में है" और हिंदू जनसंख्या 90% से घटकर 80% हो गई है जबकि मुस्लिम जनसंख्या 6% से बढ़कर 20% हो गई है। हालांकि, यह दावा तथ्यात्मक रूप से गलत है[web:8]।
वास्तविक जनसांख्यिकीय आंकड़े (2011 जनगणना)
- हिंदू जनसंख्या: 79.8% (96.63 करोड़)
- मुस्लिम जनसंख्या: 14.23% (17.22 करोड़)
- ईसाई जनसंख्या: 2.3%
- सिख जनसंख्या: 1.72%
2011 की जनगणना के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, भारत में धार्मिक जनसंख्या का वितरण शास्त्री के दावों से बिल्कुल भिन्न है[web:8][web:13]। स्वतंत्रता के समय से अब तक हिंदू जनसंख्या 84.68% से घटकर 78.06% हुई है, जबकि मुस्लिम जनसंख्या 9.84% से बढ़कर 14.09% हुई है[web:10]।
बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का हालिया बयान जो भारत की धर्मनिरपेक्षता और जनसांख्यिकीय आंकड़ों पर विवाद पैदा कर रहा है। |
धर्मनिरपेक्षता का संवैधानिक आधार
भारत 1947 में स्वतंत्रता के बाद से एक धर्मनिरपेक्ष देश रहा है और धर्मनिरपेक्ष मूल्य भारतीय संविधान में निहित हैं[web:16]। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों के प्रति समान दृष्टिकोण रखता है और किसी एक धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता[web:16]।
महत्वपूर्ण तथ्य: यह वृद्धि शास्त्री के दावे "6% से 20%" से बहुत कम है। वास्तविक आंकड़े स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि मुस्लिम जनसंख्या कभी भी 20% तक नहीं पहुंची है[web:8][web:14]।
राजनीतिक संदर्भ
धीरेंद्र शास्त्री एक लोकप्रिय धार्मिक वक्ता हैं जो अक्सर हिंदू राष्ट्रवाद से जुड़े विषयों पर बोलते हैं[web:2][web:9]। उन्होंने हाल ही में मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का संकल्प लिया और "सनातन एकता पदयात्रा" का आयोजन किया[web:9]।
उनके बयान अक्सर सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाले होते हैं और सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होते हैं[web:4][web:15]। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे दावे धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं और समाज में विभाजन पैदा करते हैं।
जनसंख्या वृद्धि: वैज्ञानिक दृष्टिकोण
जनसंख्या वृद्धि या ह्रास केवल ईश्वरीय इच्छा का विषय नहीं है, बल्कि यह कई ठोस सामाजिक-आर्थिक कारकों द्वारा निर्धारित होती है जिन्हें मानव नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से प्रभावित किया जा सकता है[web:23][web:25]।
महिलाओं की शिक्षा जनसंख्या नियंत्रण में सबसे प्रभावी कारक है[web:29][web:35]। शिक्षित महिलाएं देर से विवाह करती हैं, परिवार नियोजन के तरीकों को बेहतर ढंग से समझती हैं, और कम बच्चे पैदा करती हैं[web:28][web:35]।
उच्च आय स्तर वाले परिवार कम बच्चे पैदा करते हैं क्योंकि वे संख्या के बजाय गुणवत्ता पर ध्यान देते हैं[web:35]। परिवार नियोजन सेवाओं की उपलब्धता और गर्भनिरोधक विधियों का ज्ञान भी जनसंख्या वृद्धि को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है[web:27][web:36]।
ऐतिहासिक तथ्य: भारत 1952 में राष्ट्रव्यापी परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरू करने वाला पहला देश था[web:36][web:39]। इस कार्यक्रम के माध्यम से अब तक 16.8 करोड़ जन्मों को रोका जा चुका है[web:39]।
निष्कर्ष
यह बयान अतिशयोक्तिपूर्ण और तथ्यात्मक रूप से गलत जनसांख्यिकीय आंकड़ों पर आधारित है[web:8][web:10]। ऐसे दावे धार्मिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा देते हैं और भारत की बहुलवादी और धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक पहचान को कमजोर करने का प्रयास करते हैं[web:16][web:19]।
जनसांख्यिकीय परिवर्तन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है जो आर्थिक विकास, शिक्षा के प्रसार और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के साथ होती है[web:35][web:23]। इसे किसी धार्मिक समुदाय के खिलाफ षड्यंत्र के रूप में प्रस्तुत करना न केवल गलत है, बल्कि समाज में नफरत और विभाजन फैलाने का प्रयास है।
Post a Comment