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भारत का सार्वजनिक कर्ज़ अब ₹181.7 लाख करोड़ — GDP का 80–82% तक पहुँचने का डर

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New Delhi तारीख़: 30 सितम्बर 2025 | एडिशन: Evening

🔴 बड़ी उपलब्धि या बड़ा बोझ? — भारत पर सार्वजनिक ऋण का नया नक्शा

देश के वित्तीय हालात को देखने वालों की आँखें खुली की खुली रह जाती हैं — भारत का सार्वजनिक ऋण अब ₹181.7 लाख करोड़ के करीब पहुँच गया है। ये अमूमन GDP का लगभग 80–82% के स्तर की चेतावनी देता है। कुछ लोग इसे “बड़ी उपलब्धि” कह रहे हैं, लेकिन यह हमारे आने वाली पीढ़ियों के लिए भारी बोझ बन सकता है। चलिए इस ऋण-तल की गहराई में उतरते हैं और समझते हैं कि हकीकत कितनी भयावह है — और हमारी राष्ट्रनीति को क्या कदम उठाने होंगे।

देश को “अमृतकाल” का सपना दिखाने वाली बातें एक तरफ — वास्तविक आर्थिक आँकड़े कुछ और ही कह रहे हैं। विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स और विश्लेषणों के अनुसार भारत पर जो **सार्वजनिक (public) ऋण** दर्ज किया गया है, उसके आकलन अलग-अलग स्रोतों में मिलता-जुलता है:

  • कुछ रिपोर्ट्स सरकारी आंकड़ों के आधार पर **~₹176 लाख करोड़** बताती हैं।
  • अन्य विश्लेषकों का अनुमान **~₹186 लाख करोड़** के आसपास है।
  • फिर कुछ व्यापक गणनाओं में यह **₹205 लाख करोड़** तक भी दिखा है (कभी-कभी सार्वजनिक और अर्द्ध-सरकारी दायित्वों को जोड़कर)।

ये आंकड़े **(लाख-करोड़ ₹ में)** दर्शाने के लिये नीचे का ग्राफ़ देखें — ध्यान रखें कि संख्याएँ मीडिया रिपोर्ट्स के अलग-अलग अनुमान हैं, और असल संख्या स्रोत व परिभाषा पर निर्भर करती है।



चित्र: अलग-अलग स्रोतों में बताए गए सार्वजनिक ऋण के अनुमान (लाख-करोड़ ₹)

क्यों यह अहम है?

  1. ब्याज की बढ़ती झोली: ऋण जितना बड़ा होगा, ब्याज भुगतान भी उतना ही भारी होगा — और इससे विकास के लिये मिलने वाला पैसा कम होगा।
  2. फिस्कल स्पेस कम होगा: सामाजिक योजनाओं, बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य/शिक्षा पर खर्च पर दबाव बढ़ सकता है।
  3. निवेश और मुद्रा जोखिम: बाहरी उधारी पर निर्भरता से विनिमय और ब्याज दर जोखिम बढ़ते हैं।

क्या सरकार कर सकती है?

राजनीति छोड़ दें तो नीतिगत विकल्प साफ़ हैं: खर्च-नियंत्रण, कर-आधार बढ़ाना, बेहतर लक्ष्यित सब्सिडी, और ऐसे सार्वजनिक निवेश चुनें जिनका रिटर्न स्पष्ट हो। ऋण का अनुपात कम करने के लिये आर्थिक विकास तेज़ करना सबसे असरदार रास्ता है।

निष्कर्ष

“बड़ी उपलब्धि” की तारीफ़ करते हुए यदि आँकड़ों का सही-सही संदर्भ न दिया जाये तो भ्रम फैलता है। सार्वजनिक ऋण के वर्तमान अनुमान दर्शाते हैं कि भारत के सामने फिस्कल चुनौतियाँ मौजूद हैं — और इन्हें अनदेखा करके राजनीतिक शेख़ी बघारना भविष्य के लिये महँगा पड़ सकता है।

तत्काल सुझाव:
  • सरकार: ऋण-प्रबंधन रणनीति सार्वजनिक कर के भरोसा बढ़ाये।
  • जनता: तथ्य-आधारित बहस माँगे — केवल भावनात्मक नारों पर भरोसा न करें।
  • पत्रकार: हर अनुमान का स्रोत स्पष्ट रूप से दिखायें — क्या मापा गया है और क्या शामिल नहीं है।
✍️Rizwan...


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