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**बुलडोज़र बनाम फूल बरसाना: एक ही देश में दो तरह का कानून?**
कांवड़ यात्रा में नरमी, मुस्लिम प्रदर्शन पर सख़्ती – क्या न्याय में बराबरी खो रही है
भारत में कानून और व्यवस्था को लेकर डबल स्टैंडर्ड की चर्चा तेज़ है। कांवड़ियों के लिए फूल, मुस्लिमों के लिए बुलडोज़र – क्या प्रशासन और सरकार वाक़ई तटस्थ रह पा रहे हैं?
✍️Rizwan......
लखनऊ/नई दिल्ली: हाल ही में बरेली के “I Love Muhammad” विवाद ने एक पुराना सवाल फिर से उठा दिया है — **क्या भारत में कानून सबके लिए समान है?** एक ओर कांवड़ यात्रा के दौरान जब लाखों श्रद्धालु सड़कों पर निकलते हैं, जाम लगाते हैं, कई जगह तोड़फोड़ तक होती है, तो प्रशासन न केवल नरमी बरतता है बल्कि हेलिकॉप्टर से फूल बरसाता है। दूसरी ओर जब मुस्लिम समुदाय किसी अपमान या अन्याय के खिलाफ़ प्रदर्शन करता है, तो पुलिस लाठीचार्ज, गिरफ़्तारी और अब तो “बुलडोज़र” तक चलाती है।
पिछले वर्षों में “बुलडोज़र न्याय” उत्तर प्रदेश की राजनीति का प्रतीक बन चुका है। सरकार का तर्क है कि यह केवल “अवैध” निर्माण तोड़ने के लिए है, लेकिन आम जनता के बीच यह संदेश गया है कि यह खासकर मुस्लिमों के खिलाफ़ दंडात्मक कार्रवाई है। वहीं, जब कांवड़ यात्रा के दौरान प्रशासनिक आदेश तोड़े जाते हैं, तो उसे “धार्मिक आस्था” के नाम पर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
संवैधानिक दृष्टि से देखा जाए तो Article 14 कहता है: “राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता से वंचित नहीं करेगा।” यानी सड़कों पर जाम लगाने या हिंसा करने वाले चाहे किसी भी धर्म के हों, कार्रवाई का पैमाना एक होना चाहिए। लेकिन हाल के वर्षों में मीडिया कवरेज और प्रशासनिक रुख से यह धारणा गहरी हुई है कि बहुसंख्यक समुदाय को नरमी, अल्पसंख्यक को सख़्ती मिलती है।
सामाजिक वैज्ञानिकों का मानना है कि यह सिर्फ़ “भीड़” का मामला नहीं है, बल्कि राजनीतिक संकेत देने की रणनीति है। जब सरकार बहुसंख्यक धार्मिक यात्राओं में सक्रिय मदद करती है और अल्पसंख्यक विरोध प्रदर्शनों को “कानून-व्यवस्था की समस्या” बताकर कुचलती है, तो यह संदेश जाता है कि राज्य तटस्थ नहीं बल्कि पक्षधर है।
यह सवाल इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि लोकतंत्र की ताक़त ही न्याय में समानता है। अगर एक ही देश में एक ही अपराध के लिए दो तरह की कार्रवाई हो, तो यह न केवल संविधान के सिद्धांतों को तोड़ता है बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर करता है। प्रशासन को चाहिए कि धार्मिक भावनाओं की आड़ में किसी भी अवैध काम को न बख़्शे, और साथ ही विरोध करने के लोकतांत्रिक अधिकार को भी अपराध न माने।
निष्कर्ष: फूल बरसाना हो या बुलडोज़र चलाना — कानून का पैमाना एक होना चाहिए। सरकार और पुलिस की तटस्थता ही लोकतंत्र की असली ताक़त है। अगर यह बराबरी खो जाएगी, तो समाज में अन्याय और विभाजन और गहरा होगा।
✍️Rizwan......
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