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अफगान प्रेस मीट में महिला पत्रकारों पर रोक — विपक्ष ने घेरा सरकार, कहा ‘यह भारत की छवि पर धब्बा’


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अफगान प्रेस मीट में महिला पत्रकारों पर रोक — विपक्ष ने घेरा सरकार, कहा ‘यह भारत की छवि पर धब्बा’

Times Watch देश दुनिया

राष्ट्रहित का आईना: सत्ता की नाकामियों और चुनौतियों पर निष्पक्ष दृष्टि

**आपका स्वास्थ्य सर्वोपरि है। यह रिपोर्ट किसी दल की नहीं, बल्कि राष्ट्र की नब्ज टटोलने का प्रयास है।**

केंद्र ने सफाई दी — फैसला अफगान सरकार का था, हमारा कोई हाथ नहीं; विपक्ष बोला — भारत की धरती पर ऐसे भेदभाव की अनुमति शर्मनाक।

रिज़वान | प्रकाशित: 

तथ्य: क्या हुआ, कौन कह रहा है क्या

अफगान विदेश मंत्री अमीर ख़ान मुत्ताकी की भारत दौरे के दौरान प्रेस मीट में महिला पत्रकारों को भाग लेने नहीं दिया गया। 

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि महिलाओं को हर क्षेत्र में समान भागीदारी का अधिकार है और इस तरह के भेदभाव के सामने मोदी की चुप्पी "नारी शक्ति" पर आपके नारों की खोखलीपन को उजागर करती है।"

नई दिल्ली: अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी की प्रेस कॉन्फ्रेंस से महिला पत्रकारों को बाहर रखने पर विपक्ष की आलोचना के बीच, केंद्र सरकार ने शनिवार को कहा कि यह अफगानिस्तान सरकार और आयोजन स्थल का फैसला था...

केंद्र सरकार का कहना है कि वे इस आयोजन में शामिल नहीं थे, और यह फैसला अफगान सरकार (या अफगान पक्ष) ने लिया। 

‘अफगान विदेश मंत्री की प्रेस वार्ता में कोई भूमिका नहीं’: महिला पत्रकारों को शामिल न करने पर तीखी प्रतिक्रिया के बाद विदेश मंत्रालय ने स्पष्टीकरण दिया

कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस घटना पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने को कहा, वहीं टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा ने कहा कि सरकार ने इसकी अनुमति देकर हर भारतीय महिला का अपमान किया है।

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मीडिया संगठनों, जैसे कि Editors Guild of India, ने केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल उठाया है कि उन्होंने इस भेदभाव को “बिना आपत्ति” कैसे होने दिया। 

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने मुत्ताकी की भारत यात्रा के दौरान राजनयिक और द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा के लिए आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस से महिला पत्रकारों को बाहर रखे जाने की कड़ी निंदा की।

नई दिल्ली: मीडिया संगठनों ने शनिवार को अफगानिस्तान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी के संवाददाता सम्मेलन से महिला पत्रकारों को बाहर रखे जाने की आलोचना की और इसे "भेदभावपूर्ण" बताया तथा मोदी सरकार पर "बिना किसी आपत्ति के" इसे आगे बढ़ने की अनुमति देने के लिए सवाल उठाया।

Deccan Herald

Credit: X/@DrSJaishankar via PTI Photo



  • खाई गहरी हो रही है।

विपक्ष की तत्परता 

*मेरे ख्याल से विपक्ष अब एक दम वही राह पकड़े हुए हैं जो राह कभी सत्तापक्ष की हुआ करती थी  जैसे मुद्दों पर भाजपा जब विपक्ष में थी सत्तापक्ष को घेरती थी वैसे ही मुद्दों पर अब विपक्ष ने भी घेरना शुरू कर दिया है ,

विश्लेषण: क्या यह राजनीतिक “घेराबंदी” उचित या रणनीतिक है?

यहाँ कुछ मुख्य पहलू हैं:

पहलूसकारात्मक दृष्टिकोणआलोचनात्मक दृष्टिकोण
न्याय एवं समतामहिला पत्रकारों को किसी सार्वजनिक मीडिया फोरम से बाहर करना स्पष्ट तरह का लैंगिक भेदभाव है, और विपक्ष का इसे मुद्दा बनाना तर्कसंगत है।विपक्ष इसे केवल सियासी मुद्दे के रूप में उछाल सकता है, ताकि सरकार को घेर सके, बजाय कि वास्तविक सुधार हेतु दबाव बनाए।
सरकार की जिम्मेदारीसरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी ऐसे कार्यक्रम में, जो भारत की धरती पर हो, उसमें राज्य स्तर पर लैंगिक समानता सिद्धांतों का उल्लंघन न हो। विपक्ष का दबाव इस दिशा में सकारात्मक हो सकता है।यदि सरकार वास्तव में उस आयोजन में कोई भूमिका नहीं थी (जैसा दावा किया गया), तो विपक्ष का आरोप लगाना गलत धारणाओं या जानकारी की त्रुटि पर आधारित हो सकता है।
सामयिकता और राजनीतिक अवसरवर्तमान समय में यह मुद्दा इसलिए भी तेज हो गया क्योंकि महिलाओं के अधिकारों, मीडिया आज़ादी, और अंतरराष्ट्रीय छवि जैसे संवेदनशील विषय हैं — विपक्ष इसे उठाकर जनसंवेदनशीलता को बढ़ा सकता है।कभी-कभी विपक्ष ऐसे सामाजिक/नैतिक मुद्दों को उपयोगी राजनीतिक हथियार बना लेता है, जिससे असल ध्यान उस घटना के मूल कारणों (बहस, कूटनीति) की बजाय राजनीतिक लड़ाई की ओर मुड़ जाता है।
नीति-निरंतरतायदि विपक्ष ने पहले भी ऐसी भेदभावपूर्ण घटनाओं पर आवाज़ उठाई हो, तो इस बार की प्रतिक्रिया उसकी निरंतरता का संकेत हो सकता है — एक तरह से राजनीतिक नैतिकता की मांग।लेकिन अगर यह प्रतिक्रिया केवल एक-ढोंग़ और कबूलनामा-प्रदर्शन तक सीमित रहे, और बाद में कोई कार्रवाई न हो, तो यह केवल “शोर” बन सकता है।

निष्कर्ष (मेरी राय)

मेरे विचार में, इस मामले में विपक्ष का घेराबंदी करना स्वाभाविक और अपेक्षित कदम है — क्योंकि:

  • यह एक स्पष्ट लैंगिक भेदभाव का मामला है, जिसे अनदेखा करना मुश्किल है।

  • सरकार को यह बताना चाहिए कि यदि उन्होंने आयोजन में हस्तक्षेप नहीं किया, तो कैसे यह भेदभाव भारत की जमीन पर होने दिया गया।

  • मीडिया और नागरिक समाज का दबाव इस तरह की घटनाओं को आगे न बढ़ने के लिए ज़रूरी है।

लेकिन, “सही राह पकड़ी है” कहना थोड़ा अतिशयोक्ति हो सकता है, अगर विपक्ष की प्रतिक्रिया केवल बयानबाज़ी तक सीमित रहे और कोई कार्यात्मक दबाव या नीति प्रस्ताव न हो। यदि विपक्ष इस मुद्दे को न्यायालय, लोकायुक्त या अन्य सार्वजनिक संस्थाओं में ले जाए और कार्यवाही की मांग करे, तो यह “सही राह” कहलाएगी। रिज़वान.... 


**नोट:** यह सारांश विभिन्न विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त जानकारी पर आधारित है, जिसका उद्देश्य सिर्फ़ संतुलित और आलोचनात्मक परिदृश्य प्रस्तुत करना है। आपकी जागरूकता ही लोकतंत्र की सबसे बड़ी शक्ति है। अपना ख़याल रखें।

रिजवान

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