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कोट: “CJI पर हमला करने पर केस दर्ज नहीं हुआ। राकेश किशोर की जगह उसका नाम असद होता तो ISI और ISIS से जोड़ देते।”
🧠 विश्लेषण (Times Watch विश्लेषणात्मक टिप्पणी):
असदुद्दीन ओवैसी का यह बयान दरअसल भारत में कानून और समाज के दोहरे मापदंड पर एक तीखा सवाल उठाता है।
उनकी बात का सार यह है कि अगर हमलावर का नाम “असद” या “अब्दुल” होता, तो मीडिया और एजेंसियाँ तुरंत उसे आतंकी संगठनों (जैसे ISIS या ISI) से जोड़ देतीं, लेकिन जब वही काम कोई “राकेश” या “किशोर” करता है, तो उसे “मानसिक रूप से अस्थिर” या “आक्रोशित व्यक्ति” बताकर मामला हल्का कर दिया जाता है।
यह बयान केवल एक व्यक्ति की नाराज़गी नहीं, बल्कि उस सिस्टम पर सीधा हमला है जिसमें अपराध की परिभाषा अक्सर धर्म और नाम देखकर तय की जाती है।
ओवैसी की इस टिप्पणी में तीन स्तरों पर सवाल उठाए गए हैं:
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कानूनी पक्ष: क्यों समान अपराधों पर एकसमान कार्रवाई नहीं होती?
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मीडिया नैरेटिव: क्यों नाम देखकर अपराध को ‘आतंकी’ या ‘देशद्रोह’ करार दिया जाता है?
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सामाजिक पूर्वाग्रह: क्या देश में अब पहचान (identity) ही इंसाफ का पैमाना बन चुकी है?
🩸 निष्कर्ष:
यह बयान भारत के लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था की “समानता की कसौटी” पर एक करारा तमाचा है।
ओवैसी ने सीधे शब्दों में यह याद दिलाया है कि धर्म के आधार पर कानून की धाराएँ नहीं बदलनी चाहिए, वरना इंसाफ का अर्थ ही खत्म हो जाएगा।
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