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“ये कैसा इंसाफ?” – उमर खालिद की 5वीं सालगिरह जेल में, अदालत की प्रक्रिया पर उठे सवाल
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📅 2 अक्टूबर 2025
एक लोकतांत्रिक देश में जहाँ ‘जमानत हक़ और जेल अपवाद’ का सिद्धांत किताबों में लिखा है, वहीं उमर खालिद जैसे आरोपी बिना दोष सिद्धि के पांच साल से जेल में हैं।
इंडियन एक्सप्रेस ने अपने संपादकीय और विश्लेषण में इसे “प्रक्रिया ही सज़ा बन जाना” कहा है और पूछा है – “अगर न्याय इतना विलंबित है तो क्या यह न्याय रह जाता है?”**
मुख्य ख़बर
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दिल्ली दंगा केस व UAPA:
उमर खालिद और कई अन्य लोग 2020 के दिल्ली दंगों की तथाकथित “लार्जर कॉन्सपिरेसी” केस में UAPA के तहत आरोपी हैं।
ट्रायल अभी शुरू नहीं हुआ जबकि वे 5 साल से अधिक समय से जेल में हैं। -
जमानत पर इंडियन एक्सप्रेस की राय:
- “जमानत नियम और जेल अपवाद” का सिद्धांत इस केस में टूटता दिखता है।
- अदालत ने अभियोजन पक्ष के तर्कों को तो स्वीकार किया, लेकिन बचाव पक्ष की दलीलों को पर्याप्त महत्व नहीं दिया।
- इससे यह संदेश जाता है कि असहमति की आवाज़ को दबाना आसान होता जा रहा है।
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अख़बार ने क्या कहा:
– “This case is a textbook example of what justice is not.”
– “Court has let the process become the punishment.”
– “If precursor there, would cops have let Delhi burn?” (उमर खालिद का तर्क) -
जनमानस में गूंजता सवाल:
क्या यह वही न्याय है जिसकी किताबों में बातें होती हैं?
क्या अदालतें नागरिक स्वतंत्रता और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बना रही हैं?
स्रोत / रेफरेंस
- Indian Express Editorial – Umar Khalid Bail Denial
- Explained: Why UAPA accused including Umar Khalid denied bail
- Column: The case of Umar Khalid and others is a textbook example of what justice is not
“असहमति की क़ीमत” – उमर खालिद पर विदेशी अख़बारों का रुख़
पाँच साल से बिना ट्रायल जेल में बंद छात्र नेता उमर खालिद अब सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशी मीडिया के लिए भी न्याय और नागरिक अधिकारों की बहस का प्रतीक बन चुके हैं। बीबीसी, द गार्डियन, ले मोंद जैसे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय अख़बारों ने अपने लेखों में कहा है कि यह मामला भारत की न्यायिक प्रक्रिया की गति, असहमति की स्वतंत्रता और राजनीतिक बंदियों की हालत पर गहरे सवाल खड़ा करता है।
विदेशी मीडिया की नज़र से उमर खालिद
अख़बार/संगठन | लेख का मुख्य बिंदु | लिंक |
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The Guardian (यूके) | “This is their attempt to silence him” — 5 साल से बिना ट्रायल जेल; मानवाधिकार संगठनों ने इसे राजनीतिक प्रेरित बताया | Guardian |
Le Monde (फ़्रांस) | “For five years, India’s political prisoners have shown extraordinary courage” — भारत में राजनीतिक कैदियों की गरिमा व धैर्य को सराहा; सरकार पर असहमति दबाने का आरोप | Le Monde |
BBC News (यूके) | “Indian activist languishes in jail without bail or trial” — न्यायिक प्रक्रिया की देरी, UAPA और बेल न मिलने के पहलू पर ज़ोर | BBC News |
कॉमन थ्रेड (तीनों में समान बातें)
- न्यायिक देरी: 5 साल से जेल में लेकिन ट्रायल शुरू नहीं।
- बेल का मुद्दा: “जमानत नियम, जेल अपवाद” का सिद्धांत उलट गया।
- असहमति दबाने का आरोप: सरकार पर क्रिटिकल आवाज़ों को चुप कराने का आरोप।
- मानवाधिकार पहलू: Amnesty और Human Rights Watch जैसी संस्थाओं का हवाला।
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