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भारत ने नाटो प्रमुख के दावे को खारिज किया: मोदी-पुतिन यूक्रेन चर्चा का दावा ‘बेबुनियाद’

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भारत ने नाटो प्रमुख के दावे को खारिज किया: मोदी-पुतिन यूक्रेन चर्चा का दावा ‘बेबुनियाद’

न्यूयॉर्क में दिए इंटरव्यू में नाटो महासचिव मार्क रूटे ने कहा था—मोदी ने पुतिन को फोन कर यूक्रेन युद्ध रणनीति पूछी; विदेश मंत्रालय बोला—“तथ्यात्मक रूप से गलत और निराधार।”

भारत सरकार ने नाटो महासचिव मार्क रूटे के उन दावों को खारिज किया है जिसमें कहा गया था कि अमेरिकी टैरिफ्स के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से यूक्रेन युद्ध से जुड़ी “रणनीति” समझने के लिए फोन पर बातचीत की थी। विदेश मंत्रालय ने इसे “तथ्यात्मक रूप से गलत और पूरी तरह-बेबुनियाद” करार दिया है।

नाटो महासचिव मार्क रूटे



🔍 अहम बातें

विषय विवरण
क्या कहा गया था नाटो प्रमुख ने कहा था कि ट्रंप द्वारा भारत के रूस के तेल आयात पर टैरिफ लगने के बाद, मोदी ने पुतिन से बात की और उनसे “युद्ध की रणनीति” समझने को कहा।
भारत का जवाब भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि ऐसी कोई बातचीत नहीं हुई है जैसा कि रूटे ने दावा किया। इस बयान को “तथ्यात्मक रूप से गलत और पूरी तरह निराधार” बताया गया।
कहां कहा गया ये बयान न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के साइडलाइन इंटरव्यू में किये गये सीएनएन को दिए गये बयान का हिस्सा माना जा रहा है।

असल में हुआ किया था

👉 नाटो महासचिव मार्क रूटे का बयान

  • उन्होंने न्यूयॉर्क (UNGA साइडलाइन) में इंटरव्यू देते हुए कहा कि:

    "डोनाल्ड ट्रंप ने जब भारत पर रूस से सस्ता तेल लेने को लेकर टैरिफ लगाए, तब प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन को फोन किया और उनसे पूछा कि तुम्हारा यूक्रेन युद्ध का प्लान क्या है?"

    यानी यह बयान मोदी-पुतिन की सीधी बातचीत और उसमें यूक्रेन युद्ध की रणनीति पर चर्चा होने का संकेत देता है।


👉 भारत सरकार का रिएक्शन क्यों आया?

  1. राजनीतिक नुकसान का डर

    • अगर ये बात सही मानी जाती, तो यह मैसेज जाता कि मोदी रूस के युद्ध प्लान में दिलचस्पी ले रहे हैं, जो भारत की "तटस्थ" छवि को तोड़ देता।
    • विपक्ष इसे यूज़ करके कह सकता था कि मोदी रूस की लाइन पर हैं और पश्चिम (अमेरिका-EU) को गुमराह कर रहे हैं।
  2. भाजपा/मोदी की छवि का मुद्दा

    • मोदी खुद को "विश्वगुरु" और "शांति के दूत" की इमेज में प्रोजेक्ट करते हैं।
    • अगर यह खबर सच मानी जाती, तो यह छवि ध्वस्त होती और भाजपा पर “भारत को रूस के पाले में झोंकने” का आरोप लगता।
  3. डिप्लोमैटिक संवेदनशीलता

    • भारत हमेशा कहता रहा है कि यूक्रेन युद्ध पर उसका स्टैंड "कॉल फॉर पीस" है।
    • अगर ये साबित हो जाए कि मोदी पुतिन से "रणनीतिक सलाह" ले रहे हैं, तो अमेरिका और यूरोप से रिश्ते बिगड़ सकते हैं।

👉 असलियत कहाँ है?

  • नाटो प्रमुख का बयान बिना डॉक्यूमेंटरी सबूत के है (ना कोई कॉल ट्रांसक्रिप्ट, ना आधिकारिक प्रेस रिलीज़)।
  • भारत सरकार ने तुरंत खारिज किया, ताकि किसी भी तरह का पॉलिटिकल और इंटरनेशनल डैमेज कंट्रोल हो सके।
  • सच ये भी है कि मोदी-पुतिन की बातचीत कई बार हुई है (खासतौर पर G20, SCO, और ब्रिक्स के दौरान)।
  • लेकिन उन कॉल्स की डिटेल भारत कभी सार्वजनिक नहीं करता।

💡 मेरी राय / विश्लेषण


ये एक डिप्लोमैटिक विवाद है जहाँ किसी बयान की परिभाषा और तथ्यों की पुष्टि कमजोर है।


इस तरह के बयान सार्वजनिक डिप्लोमेटिक छवि के लिए संवेदनशील होते हैं: अगर प्रधानमंत्री Modi की छवि यह बनी कि वे रूस के युद्ध-रणनीति से जुड़े हैं, पश्चिमी देशों में आलोचना और राजनीतिक रूप से विपक्षी दलों को हथियार मिल सकते हैं।


भारत सरकार ने तुरंत खंडन कर लिया है ताकि स्थिति को नियंत्रण में रखा जाए, अफवाहों या असत्य दावों से बचा जाए।


जाहिर है, नाटो प्रमुख के बयान से पहले-पिछले घटनाक्रम (उदा. टैरिफ, यूक्रेन युद्ध, भारत-रूस ऊर्जा व्यापार) हैं, जिनसे यह अधिक विश्लेषण योग्य है, लेकिन फिलहाल साबित नहीं हुआ कि मोदी-पुतिन बातचीत के जो दावे हैं, वे सत्य हैं।



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