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01 September 2025
📰नई दिल्ली
अमेरिका के टैरिफ़ झटके और रूस के सस्ते तेल — रघुराम राजन का अल्टरनेटिव सुझाव और भारत पर असर
टीम/रिपोर्ट — 1 सितंबर 2025
सार: अमेरिका ने भारतीय आयात पर अतिरिक्त 25–50% टैरिफ़ लागू कर दिए हैं — यह कदम विशेषकर वस्त्र, ज्वेलरी, जूते और मैन्युफैक्चरिंग-एक्सपोर्ट के संवेदनशील वर्गों पर भारी प्रभाव डाल सकता है। विश्लेषकों और व्यापार समूहों के अनुमान के अनुसार इससे लाखों नौकरियाँ जोखिम में आ सकती हैं
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— कुछ अनुमानों में यह आंकड़ा ~20 लाख (2 मिलियन) तक भी बताया जा रहा है। इस पृष्ठभूमि में पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि जिन कंपनियों को रूस से सस्ते कच्चे तेल के कारण अतिरिक्त मार्जिन मिला है (जैसे बड़े रिफाइनर), उनसे विंडफॉल-टैक्स वसूल कर छोटे निर्यातकों का समर्थन किया जाना चाहिए — ताकि टैरिफ़-झटके का बोझ वहीं न गिरे, जहाँ उससे सबसे ज़्यादा नुकसान हो रहा है।
क्या हुआ — संक्षेप में
- अमेरिका ने भारत पर अतिरिक्त टैरिफ़ लागू किए; कुल स्ट्रक्चर कुछ उत्पादों पर 50% तक पहुँच गया। इस कदम का गोपनीय कारण—अमेरिकी प्रशासन का आरोप (और दबाव) कि भारत रूसी कच्चे तेल की खरीद से लाभ उठा रहा है, और कुछ रिफाइनर इससे बेहतर मार्जिन कमा रहे हैं।
- नतीजा: निर्यातक समूह, श्रमिक और कई MSME सेक्टर असमंजस में — कई ट्रेड-विशेषज्ञों और व्यापारियों ने कहा कि अगर स्थिति लंबी चले तो लाखों लोगों की रोज़गार-सुरक्षा खतरे में है (कुछ अनुमानों में ~2 मिलियन तक का अनुमान)।
रूस-का सस्ता तेल: कौन-लाभान्वित हुए?
- वैश्विक रिपोर्टें बताती हैं कि रूसी Urals व अन्य कच्चे तेल के साथ अनुबंधों में छूटें बढ़ी हैं — यह छूट भारत जैसे बड़े खरीदारों को मिली। इससे भारतीय रिफाइनरों के मार्जिन बढ़े — यानी रिफाइनिंग और रिफाइनर-प्रोफिट्स पर असर पड़ा।
- Reuters, Bloomberg जैसी समाचार एजेंसियों ने रिपोर्ट किया है कि Reliance और कुछ अन्य बड़े रिफाइनर इस सस्ते क्रूड के बड़े खरीदार रहे हैं — इसलिए मीडिया और नीति-चर्चा में यह सवाल उठ रहा है कि क्या जो अतिरिक्त लाभ हुआ है, उसका कुछ हिस्सा पीड़ित निर्यातकों को दिया जाना चाहिए।
रघुराम राजन क्या बोले (सटीक-संदर्भ)
- रघुराम राजन ने मीडिया और LinkedIn/इंटरव्यू में कहा कि यह एक ‘wake-up call’ है और विकल्प खोजने का समय है; साथ ही उन्होंने सुझाया कि सरकार उन रिफाइनरों पर विंडफॉल-टैक्स पर विचार करे जो रूसी सस्ते क्रूड से अतिरिक्त मार्जिन कमा रहे हैं, और जो रकम मिले उसे छोटे निर्यातक (SMEs) की रक्षा के लिये इस्तेमाल किया जाए। राजन ने यह भी कहा कि व्यापार को अब ‘हथियार’ के रूप में भी इस्तेमाल किया जा रहा है और भारत को अपनी रणनीति-विविधता बढ़ानी चाहिए। (रजन के यह सुझाव Livemint / Hindustan Times / India Today-style रिपोर्टिंग में संकलित हैं)।
महत्वपूर्ण नोट — ग्राफ़िक में जो लगभग-सार लिखा गया (उदा. “रिलायंस जैसी कंपनियों को फायदा हुआ” और “20 लाख रोज़गार संकट में”) — यह मिश्रित स्रोतों का संक्षेप है:
- “20 लाख” जैसी नौकरी-खतरे की संख्या कई रिपोर्टों/विश्लेषकों और trade bodies-के अनुमानों पर आधारित है (Reuters और अन्य ने इसी सीमा का हवाला दिया)। परन्तु यह रघुराम राजन के व्यक्तिगत बयान का शब्दशः-अंक नहीं है — राजन ने मुख्यतः विन्डफॉल-टैक्स जैसे नीति-विकल्प सुझाए और नौकरी-जोखिमों का उल्लेख किया। यानी ग्राफ़िक का attribution थोड़ा-सा simplification/कॉन्टेक्स्ट-रिडक्शन है।
अर्थशास्त्रीय और राजनीतिक असर
- नौकरी-जोखिम: विश्लेषकों का कहना है कि वस्त्र, ज्वेलरी, फुटवियर, फर्नीचर, स्पोर्ट्स-गुड्स जैसे श्रम-सघन क्षेत्र सबसे प्रभावित होंगे। अगर नये रेट लंबे समय के लिए बने रहते हैं तो घरेलू उत्पादन और रोजगार पर बड़ा दबाव आ सकता है। (Al Jazeera, Reuters रिपोर्ट्स)।
- रिफाइनिंग-मर्जिन बनाम निर्यातक पीड़ा: रिफाइनर सस्ते क्रूड खरीदकर रिफाइन कर के बेचे—इससे कुछ कंपनियों के मार्जिन बढ़े। राजन का तर्क है कि जो ‘अकस्मात’ लाभ हुआ है, उसका कुछ हिस्सा पेनलाइज़ कर के निर्यात-सुरक्षा में लगाया जाए। यह सुझाव नीति-मंच पर बहस का विषय बन चुका है।
- कूटनीतिक आयाम: अमेरिकी टैरिफ़ ने भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव पैदा किया है; वहीं भारत की रणनीतिक वाणिज्यिक प्राथमिकता व ऊर्जा-सुरक्षा के मुद्दे पीछे नहीं हटे। इसने वैश्विक आर्थिक और राजनैतिक समीकरणों में बहुपक्षीयता पर नई बहस छेड़ी है।
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