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15 अगस्त स्पेशल। khabren historical




कबीर नगर में जोश-ओ-खरोश से मनाया गया यौम-ए-आज़ादी, युवा पार्षद हाजी ज़रीफ़ की पहल को मिली सराहना दिल्ली: कबीर नगर, दिल्ली (110094) में 15 अगस्त, यौम-ए-आज़ादी का जश्न देशभक्ति और सामुदायिक एकता के एक शानदार प्रदर्शन के साथ मनाया गया। इस कार्यक्रम का आयोजन युवा और गतिशील पार्षद हाजी ज़रीफ़ की पहल पर किया गया था, जिन्होंने इलाके में झंडा फहराने की एक ऐसी यादगार रस्म को अंजाम दिया,

Rizwan Short News 
15/08/2025
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🇮🇳 मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों का बलिदानी इतिहास

(1857 से 1947 तक का सफर)


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"यूं तो हमारे प्यारे भारत की आज़ादी में पूरे भारतवासियों का, खासकर हमारे सभी स्वतंत्रता सेनानियों का अमूल्य योगदान है।
महात्मा गांधी, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद, रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, बिपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, अशफाक उल्ला खान जैसे महान वीरों ने अपने खून की आखिरी बूंद तक मातृभूमि के लिए बलिदान दिया।

इन वीरों के संघर्ष ने हमें गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराया, लेकिन आज मैं, रिज़वान अहमद, आपको उस सुनहरे पन्ने की सैर कराऊँगा, जिसे इतिहास की किताबों में अक्सर अनदेखा कर दिया गया —
हमारे मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों का वह बलिदानी अध्याय, जिनके नाम और कारनामे उतने उजागर नहीं हुए, जितने होने चाहिए थे।

यह वे लोग थे जिन्होंने न धर्म देखा, न जात-पात, न अपनी जान की परवाह — बस एक ही सपना देखा:
"भारत आज़ाद हो और हर इंसान सिर उठा कर जी सके।"

तो आइए, सलाम करते हैं उन वीरों को, जिन्होंने हिंदुस्तान की मिट्टी को अपने खून से सींचा।"


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🕌 मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी और उनका योगदान

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1️⃣ मौलवी अहमदुल्ला शाह फैज़ाबादी (1787–1858)

उपाधि – फैज़ाबाद का शेर

1857 की क्रांति के सबसे करिश्माई नेताओं में से।

अवध और लखनऊ में अंग्रेज़ों के खिलाफ बड़े पैमाने पर युद्ध का नेतृत्व।

गोरिल्ला युद्ध रणनीति में माहिर, अंग्रेज़ों के कई ठिकाने ध्वस्त किए।

1858 में धोखे से गिरफ्तार कर गोली मार दी गई, लेकिन उनकी वीरता का लोहा दुश्मन भी मानता था।


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2️⃣ बेगम हज़रत महल (1820–1879)

अवध के नवाब वाजिद अली शाह की बेगम।

1857 में नवाब के निर्वासन के बाद लखनऊ में बगावत का नेतृत्व।

अंग्रेज़ों को लखनऊ से बाहर कर दिया और जनता को संगठित किया।

नेपाल में निर्वासन के दौरान निधन, लेकिन अंग्रेज़ उन्हें कभी हरा नहीं पाए।


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3️⃣ मौलवी लियाकत अली इलाहाबादी (1817–1892)

1857 में इलाहाबाद पर कब्ज़ा कर “आजाद सरकार” का ऐलान।

10 दिन तक अंग्रेज़ों को शहर में प्रवेश नहीं करने दिया।

अंडमान की सेल्यूलर जेल में कई साल यातनाएं झेलीं।


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4️⃣ खान बहादुर खान रोहिल्ला (1823–1860)

बरेली में रोहिल्ला पठानों के नेता।

ब्रिटिश सेना के खिलाफ खुला विद्रोह किया।

1860 में गिरफ्तार कर फांसी दी गई।


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5️⃣ अजीमुल्ला खान (1820–1858)

नाना साहब के विशेष सलाहकार।

क्रांति की योजना विदेशों तक पहुंचाने के लिए इंग्लैंड और रूस गए।

1857 में सक्रिय भूमिका निभाई और शहीद हुए।


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6️⃣ हकीम अजमल खान (1868–1927)

मशहूर यूनानी चिकित्सक और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष (1921)।

खिलाफत और असहयोग आंदोलन के प्रमुख नेता।

जमीयत उलेमा-ए-हिंद के संस्थापक सदस्य।


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7️⃣ अली ब्रदर्स — शौकत अली (1873–1938) और मोहम्मद अली जौहर (1878–1931)

खिलाफत आंदोलन के जनक।

मोहम्मद अली जौहर ने ‘कॉमरेड’ और ‘हमदर्द’ अखबारों से ब्रिटिश विरोधी आंदोलन को मजबूत किया।

शौकत अली ने गांधीजी के साथ असहयोग आंदोलन में जेल काटी।


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8️⃣ मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (1888–1958)

भारत के पहले शिक्षा मंत्री और आज़ादी के महान योद्धा।

असहयोग, नमक सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान कई बार जेल गए।

1940 से 1946 तक कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में स्वतंत्रता संघर्ष का नेतृत्व।


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9️⃣ हसरत मोहानी (1875–1951)

कवि, पत्रकार और क्रांतिकारी।

"इंकलाब जिंदाबाद" का नारा दिया।

ब्रिटिश जेल में कई वर्ष बिताए लेकिन विचारों से समझौता नहीं किया।


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🔟 अशफाक उल्ला खान (1900–1927)

काकोरी कांड के नायक, रामप्रसाद बिस्मिल के साथी।

हिंदू-मुस्लिम एकता का जीता-जागता उदाहरण।

गोरखपुर जेल में फांसी से पहले कहा – "मेरी आखिरी ख्वाहिश है कि हिंदुस्तान आज़ाद हो।"


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1️⃣1️⃣ खान अब्दुल गफ्फार खान (1890–1988)

सरहदी गांधी के नाम से प्रसिद्ध।

पठानों में अहिंसक आंदोलन की परंपरा शुरू की।

‘खुदाई खिदमतगार’ संगठन के संस्थापक।


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1️⃣2️⃣ सैफुद्दीन किचलू (1888–1963)

रॉलेट एक्ट के खिलाफ अमृतसर में बड़े प्रदर्शन का नेतृत्व किया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय गिरफ्तार।


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1️⃣3️⃣ बीबी अमतुल्लाह और बीबी गुलाम फातिमा

खिलाफत और असहयोग आंदोलनों में महिलाओं को संगठित किया।

जेल जाने से भी नहीं डरीं।


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1️⃣4️⃣ सैयद अता उल्लाह शाह बुखारी (1892–1961)

मजलिस-ए-अहरार-ए-इस्लाम के संस्थापक।

औपनिवेशिक शासन के खिलाफ पूरे भारत में भाषणों से आग लगाई।



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इन मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानियों ने साबित किया कि आज़ादी का सपना किसी एक धर्म या जाति का नहीं, बल्कि पूरे भारत का था।
उन्होंने अपने खून, पसीने और आंसुओं से हिंदुस्तान की मिट्टी को सींचा।
आज हमारा फर्ज़ है कि हम उन्हें याद रखें, उनके बारे में आने वाली पीढ़ियों को बताएं, और यह संदेश दें —
"हिंदुस्तान की आज़ादी की कहानी हिंदू-मुस्लिम-सिख-ईसाई सबकी साझा विरासत है।"


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