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विजय थलपति ने सबको साथ लेकर चलने की राह चुनी, जबकि पवन कल्याण ने भाजपा के साथ गठबंधन किया है। साउथ की सियासत में यह फर्क क्या मायने रखता है?
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विजय (थलपति) ने “सबको साथ” लेकर चलने का रास्ता चुना है (यानी एक इन्क्लूसिव / समावेशी लाइन)
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और पवन कल्याण ने जिस पार्टी का साथ लिया है, वह भाजपा है, जिसकी आलोचना यह कहकर की जाती है कि उसने “नफरत की राजनीति” को बढ़ावा दिया है
“फिल्मी सितारे और राजनीति: हीरो की इमेज बनाम नफरत की सियासत”
सिनेमा के पर्दे पर ये लोग हीरो कहलाते हैं। जनता उन्हें सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं, बल्कि आदर्श मानकर चलती है।
लेकिन 2014 के बाद (भाजपा के सत्ता में आने के बाद) ऐसा लगने लगा है कि कई सितारे जनता को मूर्ख समझ रहे हैं — क्योंकि वे खुलेआम उस राजनीति का समर्थन करते हैं जिसे आलोचक “नफरत की राजनीति” कहते हैं।
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विजय थलपति की रैली में समर्थकों की भीड़ |
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जनता फिल्मी सितारों में कोई भेदभाव नहीं करती; उन्हें अपने हीरो की तरह चाहती है।
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इसके बावजूद, कुछ सितारे भाजपा जैसी पार्टियों को सपोर्ट करते हैं जिनकी नीतियों को आलोचक “ध्रुवीकरण” और “नफरत” से जोड़ते हैं।
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ऐसा करने से लगता है कि ये सितारे अपने चाहने वालों के भरोसे और उम्मीद के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।
उदाहरण,
आपके नज़रिए में, इस “कड़ी” में ये नाम शामिल हैं:
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अनुपम खेर: 2014 के बाद से अनुपम खेर भी नफरत की इस राजनीती में शामिल हो गए अब उन्हें ज़रा भी महंगाई नज़र नहीं आती नज़र आता है तो सिर्फ हिंदुत्व का एजेंडा,
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परेश रावल: इन्होने भी 2014 के बाद से अपने सुर बिलकुल भाजपा के सुर के साथ मिला रखे हैं इनको भी अब देश में कहीं भी महंगाई बलात्कार नफरत नज़र नहीं आती,
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अतुल अग्निहोत्री: इन साहब को तो पूरी दुनिया ही अब जा कर जानी है के हाँ इस नाम का भी कोई फिल्म मेकर हुआ करता है ऐसा वैसा फिल्म मेकर नहीं बल्कि भारत की जनता अगर समझदार ना होती तो अब तक , इसकी बनाई फ़िल्में देश को दंगों की आग में झोंक चुकी होती, ऐसे अनेकों नाम से फिल्म इंडस्ट्रीज़ भरी पड़ी है जो जनता को आजतक मुर्ख समझते आये हैं,
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और अब पवन कल्याण
विजय थलपति ने सबको साथ लेकर चलने की राह चुनी, जबकि पवन कल्याण ने भाजपा के साथ गठबंधन किया है। साउथ की सियासत में यह फर्क क्या मायने रखता है?
दक्षिण भारत की सियासत में दो फिल्मी सितारों का मुकाबला दिलचस्प हो गया है।
विजय थलपति सबको साथ लेकर चलने की बात कर रहे हैं।
वहीं पवन कल्याण ने भाजपा का साथ चुना है — और भाजपा को लेकर आलोचकों का कहना है कि उसने “सांप्रदायिक ध्रुवीकरण” और “नफरत की राजनीति” को बढ़ावा दिया।
मुख्य बातें:
नेता | राजनीतिक रुख | जनता में छवि |
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विजय थलपति | समावेशी, विपक्षी धारा | सभी समुदायों को साथ लेने का संकल्प, नई उम्मीद |
पवन कल्याण | भाजपा/तेदेपा गठबंधन के साथ | सत्ता में हिस्सेदारी, संसाधनों तक पहुंच; आलोचना कि भाजपा की राजनीति नफरत-आधारित है |
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