Top News

दिल्ली सरकार बनाम सुप्रीम कोर्ट: ग्रीन पटाखों पर 'वोट बैंक' की आतिशबाजी?


TIMES WATCHदेश दुनिया, 

रखे हर खबर पर पैनी नज़र…"

हम खबरों में से खबरें निकालते हैं बाल की खाल की तरह, New Delhi Rizwan

ताज़ा पोस्ट

पर्यावरण बनाम जनभावना: क्या ग्रीन पटाखे दिल्ली को ज़हरीली हवा से बचा पाएंगे?

नई दिल्ली, 7 अक्टूबर 2025: देश की राजधानी **दिल्ली** में दिवाली पर पटाखों का मुद्दा एक बार फिर राजनीति और पर्यावरण के चौराहे पर आ खड़ा हुआ है। मुख्यमंत्री **रेखा गुप्ता** ने घोषणा की है कि सरकार **प्रमाणित हरित पटाखों** पर प्रतिबंध हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करेगी। ऊपरी तौर पर यह कदम 'जनभावनाओं' के सम्मान जैसा दिखता है, लेकिन आलोचक इसे **वोट बैंक की राजनीति** से प्रेरित एक ऐसा जोखिम भरा दांव बता रहे हैं, जो दिल्लीवासियों को दिवाली के तुरंत बाद फिर से **जहरीली हवा** में धकेल सकता है। सवाल यह है कि क्या **30% कम प्रदूषण** फैलाने वाले ये ग्रीन पटाखे, घुटती दिल्ली को वाकई कोई राहत दे पाएँगे?✍Rizwan.....

क्या है सरकार का तर्क?

मुख्यमंत्री गुप्ता ने कहा है कि दिवाली भारतीय संस्कृति का सबसे बड़ा धार्मिक पर्व है और करोड़ों लोगों की आस्था को देखते हुए यह फैसला लिया गया है। सरकार कोर्ट को यह आश्वासन देगी कि वह **जनभागीदारी** सुनिश्चित करेगी और **नियमों का सख्ती से पालन** करवाएगी ताकि केवल प्रमाणित हरित पटाखों का ही उपयोग हो सके। सरकार का दावा है कि वह **परंपरा और पर्यावरण** के बीच संतुलन बनाना चाहती है।


आलोचना: पर्यावरण की कीमत पर राजनीति?

पर्यावरण विशेषज्ञों और विपक्षी दलों ने सरकार के इस कदम को सीधे तौर पर **गैर-जिम्मेदाराना** बताया है। उनका कहना है कि यह निर्णय प्रदूषण की गंभीर चुनौती से निपटने के बजाय, तत्काल **लोकप्रियता हासिल** करने का प्रयास है।

1. ग्रीन पटाखे, 'प्रदूषण-मुक्त' नहीं

सबसे बड़ी भ्रांति **'हरित'** शब्द को लेकर है। CSIR-NEERI द्वारा विकसित ये पटाखे पारंपरिक पटाखों की तुलना में केवल **30% तक कम** प्रदूषक उत्सर्जित करते हैं। इनमें बेरियम नाइट्रेट जैसे कुछ हानिकारक रसायन कम होते हैं, लेकिन ये अभी भी **धूल और शोर** का कारण बनते हैं। दिल्ली जैसे शहर में, जहां हवा की गुणवत्ता अक्सर 'गंभीर' (Severe) श्रेणी में होती है, थोड़ी सी छूट भी स्थिति को **विस्फोटक** बना सकती है।

2. लागू करने की असंभव चुनौती

पिछले वर्षों में, समय-सीमा वाले प्रतिबंध भी **पूरी तरह से विफल** रहे हैं। बाजार में **नकली हरित पटाखों** का आना, और आम जनता द्वारा असली और नकली में अंतर न कर पाना, प्रतिबंध को एक मज़ाक बना देगा। सड़कों पर **सख्ती से जांच** करना और करोड़ों लोगों के बीच नियमों का पालन करवाना, एक **अव्यवहारिक** चुनौती है, जो अंततः **वायु प्रदूषण में वृद्धि** का कारण बनेगी।

दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता, सुप्रीम कोर्ट भवन और न्याय का तराजू दर्शाती एक इमेज। तराजू में 'जनभावना' और 'पर्यावरण' शब्द लिखे हैं, जो दिवाली के ग्रीन क्रैकर्स पर प्रतिबंध हटाने के मुद्दे को दर्शाते हैं।
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने दिवाली पर ग्रीन पटाखों पर प्रतिबंध हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करने की घोषणा की है। इस फैसले ने पर्यावरण बनाम जनभावना की बहस को फिर से गरमा दिया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला अहम होगा।


3. वोट बैंक की राजनीति का आरोप

आलोचकों का सीधा हमला है कि सरकार **जनभावनाओं** की आड़ में **वोट बैंक** को साध रही है। प्रदूषण जैसे स्वास्थ्य और जीवन से जुड़े गंभीर मुद्दे पर **पर्यावरण संरक्षण** के दीर्घकालिक लक्ष्य को दरकिनार करना, सरकार की **पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता** पर गंभीर सवाल खड़े करता है। क्या कुछ घंटों की आतिशबाजी, पूरे शहर के लाखों लोगों के स्वास्थ्य से अधिक महत्वपूर्ण है?


निष्कर्ष: सुप्रीम कोर्ट की अग्निपरीक्षा

दिल्ली सरकार अब गेंद को सुप्रीम कोर्ट के पाले में डाल चुकी है। 8 अक्टूबर को होने वाली अगली सुनवाई में यह स्पष्ट हो जाएगा कि अदालत **धार्मिक परंपराओं** और **दिल्लीवासियों के 'स्वच्छ हवा के अधिकार'** में से किसे वरीयता देती है। इस बीच, दिल्ली के नागरिक और पर्यावरणविद यह उम्मीद कर रहे हैं कि न्यायालय राजनीतिक दावों पर नहीं, बल्कि **विज्ञान और जनस्वास्थ्य** के तथ्यों पर आधारित फैसला सुनाएगा।

    Post a Comment

    Previous Post Next Post